600 ब्राह्मणों की टीम, 300 साल से नहीं बदली लड्डू बनाने की विधि, 320 रुपये के चक्कर में तिरुपति बालाजी में अनर्थ

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Sachin Meena

जिस मंदिर पर लोगों की सबसे ज्यादा आस्था है। उस तिरुपति बालाजी मंदिर में ऐसा अनर्थ हुआ कि पूरा हिंदू समाज हिल गया। सरकार हिल गई और एक पूर्व मुख्यमंत्री (जगनमोगन रेड्डी) का तो पूरा पॉलिटिकल करीयर दांव पर लग गया

क्या आप जानते हैं ये सब किसलिए हुआ?

 

320 रुपये के हिसाब से घी खरीदने की जिद

 

क्योंकि एक सरकार और उसके अफसर जिद पर अड़े थे कि उनको तो 320 रुपये के हिसाब से ही घी खरीदना है। सस्ते के चक्कर में जो घी खरीदा गया, उसमें घी कम और जानवरों की चर्बी ज्यादा मिली पाई गई। चर्बी ने आस्था पर ऐसी चोट की है कि अब भक्तों की चीख निकल रही है।

लड्डुओं का अद्भुत दैवीय स्वाद

 

तिरुपति बालाजी के लड्डू को साक्षात् भगवान का प्रसाद कहा जाता है। इसमें अद्भुत दैवीय स्वाद होता है। ऐसा दावा है कि ऐसे लड्डू कहीं और नहीं बनते हैं। ऐसे लड्डू कहीं और नहीं मिलते है। ये भी कहा जाता है कि इन लड्डुओं का प्रसाद ग्रहण नहीं किया तो तिरुपति बालाजी के दर्शन का पुण्य नहीं मिलता है।

 

लड्डुओं में मिलाई गई जानवरों की चर्बी

 

बालाजी के इन्हीं दिव्य लड्डूओं में अब मिलावट हो गई है। आरोप है कि बालाजी के लड्डुओं में जानवरों की चर्बी मिला दी गई। बालाजी के लाखों भक्त महीनों तक मिलावटी लड्डुओं का प्रसाद खाते रहे। ये आरोप किसी ऐरे-गैरे ने नहीं लगाए हैं। ये आरोप सूबे के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने लगाए हैं। सबूत के तौर पर सीएम ने साइंटिफिक लैब की दो-दो रिपोर्ट दी

लड्डू में मिलावट से बदला स्वाद

 

नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (NDDB)की लैब रिपोर्ट में लिखा है कि तिरुपति से आए घी के सैंपल में फॉरेन फैट मिला है। फॉरेन फैट का मतलब है,

 

सोयाबीन का तेल

सूरजमूखी का तेल

जैतून का तेल

रेपसीड या कैनोला का तेल

अलसी का तेल

गेहूं के बीज

मक्का के बीज

कपास के बीज का तेल

नारियल का फैट

पाम कर्नेल फैट

सुआर की चर्बी की भी संभावना

 

फॉरेन फैट में ये सब भी होते हैं। इनके होने से हिंदुओं की आस्था पर उतनी चोट नहीं लगी है। मगर जैसे ही तिरुपति के लड्डू प्रसादम में फिश ऑयल यानी मछली का तेल, बीफ टैलो यानी जानवरों की चर्बी और लार्ड यानी सुअर की चर्बी होने की संभावना सामने आई है। इससे बवाल मच गया।

 

सवाल है कि बालाजी के लड्डू में मिलावट किसने की है ?

बालाजी के लड्डू में जानवरों की चर्बी किसने डाल दी?

बालाजी के लड्डू में मछली का तेल किसने मिला दिया ?

कैसे बनते हैं ये लड्डू?

 

करोड़ों हिंदुओं की आस्था पर चोट डालने वाली इस खबर को अच्छी तरह समझने से पहले ये समझना जरूरी है कि बालाजी के लड्डू बनते कैसे हैं?

 

बेसन यानी चने की दाल का बारीक पाउडर

देसी घी

काजू

किशमिश

केसर

बादाम

इलायची

आंवला और अन्य सूखे मेवे

बालाजी के लड्डू यानी प्रसादम बनाने का तरीका वही है, जैसे सामान्य लड्डू बनते हैं। इससे हर लड्डू बालाजी का प्रसाद नहीं हो जाता। तिरुपति के प्रसाद की सबसे खास बात इसे बनाने की प्रक्रिया में है।

 

रसोई में 600 ब्राह्मणों की टीम बनाती है लड्डू

 

तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TDD) की रसोई, जिसे स्थानीय भाषा में पोटू कहते हैं। बालाजी के भोग के लड्डू सिर्फ और सिर्फ तिरुमला तिरुपति देवस्थानम की रसोई में बनते हैं। इसके लिए 600 ब्राह्मणों की टीम दिन-रात शिफ्टों में काम करती है। यहां रोजाना साढ़े तीन लाख लड्डू बनते हैं। 800 किलो काजू और 600 किलो किशमिश की रोजाना खपत होती है।

 

कश्मीर से मंगाया जाता है केसर

 

बालाजी के लड्डू बनाने की एक-एक सामग्री बहुत बारीकी से लाई जाती है। यहां तक कि बेसन घोलने का पानी भी तिरुपति के विशेष तालाब से ही लिया जाता है। केसर कश्मीर से मंगाए जाते हैं। सूखे मेवे राजस्थान और केरल से खरीदे जाते हैं। इलायची विशेष तौर पर केरल से ही आती है।

 

300 साल से नहीं बदली बनाने की विधि

 

बालाजी के इन लड्डूओं को बनाने की विधि पिछले 300 साल से नहीं बदली गई है। 2009 में तिरुपति के लड्डू को GI टैग भी मिला है। मतलब ये कि तिरुपति के लड्डू को एक विशिष्ट पहचान हासिल है। इसे केवल तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर में ही तैयार किया जा सकता है।

 

3 अलग-अलग साइज के बनते हैं तिरुपति बालाजी के लड्डू

 

प्रोक्तम लड्डू- इनका वजन 40 ग्राम होता है। ये लड्डू दर्शन करके निकलने वाले सभी भक्तों को फ्री में दिया जाता है।

स्थानम लड्डू- इनका वजह 175 ग्राम होता है। इसमें बादाम काजू किशमिश और केसर का अधिक इस्तेमाल होता है। ये लड्डू 50 रुपये का एक मिलता है।

एक तीसरा लड्डू भी बनता है- कल्याणोत्सवम लड्डू- जो भक्त अर्जिता सेवा और कल्याणोत्सवम में भाग लेते हैं, उनको ये लड्डू दिया जाता है। ये लगभग 750 ग्राम का होता है और इसकी कीमत होती है 200 रुपये है।

मंदिर की अपनी क्वालिटी कंट्रोल टीम

 

तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TTD) बोर्ड की अपनी क्वालिटी कंट्रोल टीम है। बालाजी की रसोई में ही एक इंटरनल टीम रहती है, जिसे सेंसरी टीम कहते हैं। इस सेंसरी टीम के मेंबर सेंट्रल फूड टेक्नोलॉजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (CFTRI) से ट्रेंड होते हैं।

 

चख कर नहीं टेस्ट नहीं किया जाता प्रसाद

 

भगवान को भोग लगाने वाले प्रसाद को चखकर टेस्ट नहीं किया जा सकता, इसलिए सेंसरी टीम के लोग लड्डू प्रसाद को देखकर और उसे सूंघकर इसका क्वालिटी कंट्रोल करते हैं। सबसे पहले इसी सेंसरी टीम ने बताया था कि जुलाई 2023 से लड्डुओं का स्वाद बदलने लगा था। वहीं, अब इन लड्डुओं को लेकर आस्था के साथ हो रहा खिलवाड़ सबके सामने आ गया है।

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