भोजपुरी गायक पवन सिंह को लेकर बीजेपी की पिक्चर अभी नहीं क्लियर

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Sachin Meena

भारतीय जनता पार्टी ने भोजपुरी गायक पवन सिंह को बंगाल की आसनसोल सीट से टिकट दिया था| पहले तो उन्होंने खुशी मनाई, लेकिन 24 घंटे बाद ही आसनसोल से चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया| इसका कारण यह था कि तृणमूल कांग्रेस ने उनके फूहड़ भोजपुरी गाने वायरल कर दिए थे, खासकर वे गाने जो बंगाली औरतों पर गाए गए थे|

उसी पवन सिंह ने अब बिहार की काराकाट सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने का एलान करके भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं| भाजपा ने यह सीट समझौते में उपेन्द्र कुशवाहा को दी हुई है, जिन्हें वह उस समय जेडीयू से तोड़ कर अपने साथ लाई थी, जब नीतीश कुमार इंडी एलायंस में थे, और मोदी को सत्ता से बाहर करने के सपने संजो रहे थे|

उपेन्द्र कुशवाहा उस समय भी भाजपा के लिए महत्वपूर्ण थे, और अब भी हैं, क्योंकि उपेन्द्र कुशवाहा के साथ ही नीतीश कुमार की लव कुश की जोड़ी बनी थी| आसनसोल से चुनाव लड़ने से इंकार करने के बाद पवन सिंह दिल्ली आए और जेपी नड्डा से मिले थे|

उस मीटिंग में पवन सिंह ने बिहार की आरा सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी| जबकि भाजपा ने उनके नाम पर विचार करने के बजाए वहां से अपने पुराने उम्मीदवार आरके सिंह को ही टिकट दिया है| हालांकि भाजपा का काडर आरके सिंह से खुश नहीं है, क्योंकि यूपीए के कार्यकाल में गृह सचिव रहते हुए हिन्दू आतंकवाद का नाम उन्होंने ही दिया था|

भाजपा चाहती थी कि पवन सिंह आसनसोल से ही चुनाव लड़ें, क्योंकि तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार शत्रुध्न सिन्हा के मुकाबले वह सशक्त उम्मीदवार थे| जैसे 2019 में भाजपा के रविशंकर प्रसाद ने पटना से कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ रहे शत्रुघ्न सिन्हा को बुरी तरह हरा दिया था, वैसे ही आसनसोल से तृणमूल कांग्रेस टिकट पर उपचुनाव जीते शत्रुघ्न सिन्हा को पवन सिंह बड़ी आसानी से हरा सकते थे|

लेकिन जब वह नहीं माने तो भाजपा ने 10 अप्रेल को वहां से एस.एस. आहलुवालिया को टिकट दे दिया, जो पिछली बार बंगाल की बर्धवान-दुर्गापुर सीट से और 2014 में दार्जिलिंग सीट से चुनाव जीते थे| आहलुवालिया के नाम की घोषणा होने के दो घंटे बाद ही पवन सिंह ने आरा के बगल की काराकोट सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने का एलान कर दिया|

अब इसे भले ही उपेन्द्र कुशवाहा के लिए खतरे के तौर पर देखा जा रहा हो, लेकिन सच यह है कि भाजपा ने अपने गले में खुद ही सांप बाँध लिया है| पवन सिंह का निर्दलीय चुनाव लड़ना बिहार-झारखंड की कई सीटों पर भाजपा को भारी पड़ सकता है|

जिन जगहों पर भोजपुरी भाषाई लोगों की अच्छी संख्या है, उन सीटों पर पवन सिंह का फैक्टर काम कर सकता है| काराकाट के बगल में आरा, सारण सीट पर भाजपा को नुकसान हो सकता है| इसी तरह झारखंड में धनबाद और जमशेदपुर जैसी सीटों पर भी पवन सिंह के विद्रोह का असर एनडीए उम्मीदवारों पर पड़ेगा|

इन दोनों ही सीटों पर भोजपुरी और राजपूत वोटरों की अच्छी खासी संख्या है| राजनीतिक गलियारों में एक चर्चा यह भी है कि पवन सिंह ने लालू यादव के साथ मिलकर भाजपा के साथ खेल कर दिया है| पवन सिंह की लालू यादव परिवार से नजदीकी पहले से रही है| ऐसे में भाजपा को आँख कान खोल कर चलना चाहिए था|

एक चर्चा यह भी है कि भाजपा ने कुशवाहा समाज में पकड़ बनाने के लिए ही सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया| वह सम्राट चौधरी के रास्ते के सारे कांटे हटाना चाहती है| लेकिन यह चर्चा इसलिए विश्वसनीय नहीं लगती क्योंकि भाजपा उपेन्द्र कुशवाहा को हरा कर न सिर्फ एनडीए की ही एक सीट कम करेगी, बल्कि बिहार झारखंड की अपनी कम से कम चार पांच सीटों को संकट में डालेगी|

उपेन्द्र कुशवाहा भाजपा के लिए कम महत्वपूर्ण नहीं है। भाजपा अगर 2025 के विधानसभा चुनावों में अपनी सरकार बनाना चाहती है, तो उसे छोटी छोटी जातियों के नेताओं को अपने पाले में लाना होगा। उन्हें अपने पाले से भगा कर भाजपा अपनी सरकार नहीं बना सकती|

तीन सीटों की मांग कर रहे उपेंद्र कुशवाहा मुश्किल से काराकाट की एक सीट पर सहमत हुए थे| शुरुआत में तो यहाँ तक चर्चा थी कि नीतीश कुमार के एनडीए में वापस आ जाने से वह असहज हैं, और भाजपा का साथ छोड़कर लालू यादव के साथ जाने पर विचार कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने एनडीए के भीतर ही हालात से समझौता कर लिया था|

2008 में हुए परिसीमन के बाद काराकाट सीट अस्तित्व में आई थी, 2009 में भाजपा और जेडीयू मिल कर चुनाव लडे थे और इस सीट पर जेडीयू के महाबली कुशवाहा जीते थे, लेकिन 2014 में अपनी पार्टी बना कर उपेन्द्र कुशवाहा ने महाबली कुशवाहा को हरा दिया था| 2019 में महाबली कुशवाहा ने उपेन्द्र कुशवाहा को हरा दिया था|

काराकाट सीट पर सबसे ज्यादा लगभग 3 लाख यादव वोटर हैं, लगभग डेढ़ लाख मुस्लिम, कुशवाहा और कुर्मी मिलाकर ढाई लाख वोटर हैं| राजपूत जाति के भी लगभग 2 लाख वोटर हैं| पिछले तीनों ही चुनावों में कुशवाहा उम्मीदवार ही जीतते रहे हैं| इंडी एलायंस ने बंटवारे में यह सीट सीपीआई एमएल को दी है, जिसने कुशवाहा समाज के राजा राम सिंह को उम्मीदवार बनाया है|

पवन सिंह की एंट्री से राजपूतों और यादवों की उनके पक्ष में गोलबंदी होने की पूरी संभावना है| क्योंकि आरजेडी का उम्मीदवार नहीं है, इसलिए यादव और मुस्लिम वोटरों का रुझान पवन सिंह की तरफ हो सकता है| यानी दो-दो कुशवाहा उम्मीदवारों के सामने राजपूत, यादव और मुस्लिम पवन सिंह के पक्ष में गोलबंद हो सकते हैं| पवन सिंह के प्रशंसक सभी जातियों और वर्गों में पाए जाते हैं। उनके स्टेज शो में बिहार के गांवों में हजारों की भीड़ उमड़ती है|

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