दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर कोचिंग हादसा मामले की जांच हाई कोर्ट ने सीबीआई को सौंप दी है.
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Sachin Meena
दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर कोचिंग हादसा मामले की जांच हाई कोर्ट ने सीबीआई को सौंप दी है. दिल्ली HC के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला की बेंच ने शुक्रवार (2 अगस्त) को कहा, ”मामले की गंभीरता को देखते हुए हम जांच CBI को ट्रांसफर कर रहे हैं.”
साथ ही जज ने कहा कि दिल्ली के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी बने. इसमें डीडीए के वीसी (उपाध्यक्ष), एमसीडी कमिश्नर, पुलिस कमिश्नर भी इसमें शामिल हों. जज ने चीफ सेक्रेट्री की अध्यक्षता वाली कमेटी को 4 सप्ताह में रिपोर्ट देने को कहा.
सुनवाई के दौरान जज ने अहम टिप्पणी की. उन्होंने कहा, ”गनीमत है कि जैसे आपने ड्राइवर को गिरफ्तार किया, वैसे पानी का चालान नहीं काट दिया. पूरा मामला आपराधिक लापरवाही का है. जिम्मेदारों को ढूंढिए. आपने कीमती समय बर्बाद किया. फाइल नहीं जब्त किए. हो सकता है, अब तक उन्हें बदल दिया गया हो. क्या इस तरह जांच होती है?”
पूरा ढांचा पुराना हो चुका है- हाई कोर्ट
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा, ”सब एक दूसरे के पाले में गेंद डालते रहते हैं. एक साथ मिल कर लोगों के लिए काम नहीं करते हैं. एमसीडी कमिश्नर सुनिश्चित करें कि सभी नाले साफ हों. अगर उन पर अतिक्रमण है, तो उसे हटाया जाए. एमसीडी अपने कर्तव्य निभा नहीं पा रही है. ऐसा लगता है कि एमसीडी को भंग कर देने की ज़रूरत है. दिल्ली की सिविक एजेंसियों के पास काम के लिए फंड ही नहीं है. दिल्ली में नागरिक सुविधाओं का पूरा ढांचा पुराना हो चुका है.”
शनिवार को हुआ था हादसा
दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर में पिछले हफ्ते शनिवार (27 जुलाई) को राव कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में पानी भर जाने से तीन छात्रों की मौत हो गई थी. इसके बाद एनजीओ कुटुंब और अमरीक सिंह बब्बर ने निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की. याचिकाकर्ता ने रिटायर्ड जज की निगरानी में दिल्ली में हुए अवैध निर्माण की जांच की मांग रखी.
सुनवाई के दौरान दिल्ली नगर निगम (MCD) के वकील ने कहा कि दिल्ली पुलिस जांच कर रही है. हम अभी कार्रवाई नहीं कर सकते. वहीं पुलिस के वकील ने कहा कि हमारी जांच का दायरा सीमित है. इनकी किसी कार्रवाई में हमारे चलते कोई बाधा नहीं हो रही.
जज ने लगाई फटकार
इसके बाद जज ने कहा कि अगर वह ड्रेन बंद है तो जिन अधिकारियों की इस बारे में ज़िम्मेदारी है, उन पर कार्रवाई होनी चाहिए. इसपर एमसीडी कमिश्नर ने कहा कि बड़ा काफी हद तक नाला बंद था. उससे जुड़ने वाले छोटे नाले भी सही तरीके से नहीं जुड़े थे.
इसके बाद जज ने कहा कि इन चीजों की निगरानी रखना ही तो अधिकारियों का काम है. पुलिस की कार्रवाई को भूल जाइए, आपका विभाग उन पर क्या कार्रवाई कर रहा है? इसे ठीक करने में कितने पैसे लगेंगे. इसपर कमिश्नर ने कहा कि 2 करोड़.
फिर जज ने कहा कि इतना छोटा काम और यह भी नहीं हुआ? आपको अपने अधिकारियों पर कार्रवाई करनी चाहिए. हमने इस तरह के मामलों में पहले भी कुछ आदेश दिए हैं. कोई उनका पालन नहीं कर रहा. अब उस बिल्डिंग पर आते हैं. हम इंजीनियर नहीं हैं, लेकिन समझते हैं कि ऐसे निर्माण को अनुमति नहीं मिल सकती. आपके जेई और एई ने कैसे उसे बनने दिया? स्टोरेज के लिए बने बेसमेंट में लाइब्रेरी कैसे चल रही थी? क्या इस पहलू की जांच हुई? दिल्ली फायर सर्विस की 1 जुलाई की रिपोर्ट में यह जगह स्टोरेज थी, क्या 26 दिन में सब बदल गया?
जज ने पुलिस के वकील से कि आपकी जांच इन लोगों तक क्यों नहीं पहुंच रही? आप एमसीडी से जानकारी मांग कर इंतज़ार कर रहे हैं. क्या इसी तरह से गंभीर मामले की जांच होती है? एमसीडी कमिश्नर ने बताया कि नाला बंद था, क्या पुलिस के जांच अधिकारी ने इसे देखा. अपनी केस डायरी में दर्ज किया?
‘कहां व्यस्त थे?’
इसपर वकील IO से पूछने के बाद कहा कि नहीं. फिर जज ने पूछा कि क्यों? कहां व्यस्त थे? कार वाले को गिरफ्तार करने में व्यस्त थे? आपको इस बात की भी जांच करनी चाहिए कि बच्चे क्यों डूबे? वह बेसमेंट से बाहर कईं नहीं निकल पाए?
दिल्ली पुलिस के डीसीपी ने कहा कि हमने एमसीडी से सवाल किए हैं. पूछा है कि आखिरी बार कब नाले की सफाई करवाई. उन्होंने कहा कि नियमित सफाई होती है. इसके बाद जज ने कहा कि आपने एमसीडी की फाइलों को जब्त क्यों नहीं किया है? आप पुलिस हैं? लोग आपकी तरफ उम्मीद से देख रहे हैं? बच्चे क्यों बाहर नहीं निकल पाए?
डीसीपी ने फिर कहा कि वह स्टडी हॉल जैसी जगह थी. 20-30 के लगभग छात्र थे. 2 दरवाज़े थे. लाइब्रेरी का इंचार्ज और कई छात्र डर से निकल गए. 2 दरवाज़े थे. एक खुल नहीं रहा था. रोड से नीचे आती सीढियों तक पानी आ गया था. अंदर घुसे पानी के चलते फर्नीचर तैरने लगे. पानी के दबाव से शीशा टूट गया. एक टेबल ने दरवाज़े को ब्लॉक कर दिया.
इसपर जज ने कहा कि आपके जांच के तरीके से हम संतुष्ट नहीं हैं. जांच CBI को सौंपनी होगी. कभी-कभी मामला जांच में कमी से ज़्यादा आपसी भाईचारे का होता है. भ्रष्टाचार और लापरवाही का हाल यह है कि जिस बिल्डिंग को सील करवाया जाता है, थोड़े दिन में उसका आकार बड़ा हो जाता है. 2 मंज़िल से वह 5 मंज़िल बन जाती है. मकान के मालिक बदल चुके होते हैं. वहां निर्दोष लोग रह रहे होते हैं, जिनको इन बातों की कोई जानकारी ही नहीं होती.
दिल्ली में भयंकर अव्यवस्था- दिल्ली हाई कोर्ट
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा, ”हमें लगता है कि दिल्ली में भयंकर अव्यवस्था है. किस एजेंसी का काम क्या है, पता ही नहीं चलता. यह नहीं पता कि आखिरी बार कैबिनेट की बैठक कब हुई? दिल्ली के पूरे प्रशासन पर दोबारा विचार की ज़रूरत है. इसके लिए एक कमिटी बनानी होगी.”