ताजमहल भी वक्फ की संपत्ति..! ASI ने किया मोदी सरकार के बिल का समर्थन

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Sachin Meena

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने हाल ही में वक्फ संशोधन विधेयक-2024 का समर्थन किया है, जो वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और नियंत्रण के लिए नए नियम लाएगा। एएसआई का कहना है कि देश के 120 से अधिक स्मारकों को लेकर वक्फ बोर्ड के साथ विवाद जारी है, जिससे इन धरोहरों के संरक्षण और देखरेख में समस्याएँ आ रही हैं।

विशेष रूप से ताजमहल को लेकर एएसआई और वक्फ बोर्ड के बीच एक लंबा विवाद चल रहा है। वक्फ बोर्ड ने 2005 में ताजमहल को अपनी संपत्ति घोषित कर दिया था, जिसका एएसआई ने कड़ा विरोध किया।

 

सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में वक्फ बोर्ड के आदेश पर रोक लगा दी थी और 2018 में यह कहा कि ताजमहल को वक्फ संपत्ति मानना मुश्किल है। कोर्ट ने वक्फ बोर्ड से शाहजहां द्वारा हस्ताक्षरित वक्फनामा पेश करने को कहा था, लेकिन बोर्ड ऐसा कोई दस्तावेज नहीं दिखा सका। वक्फ बोर्ड का उद्देश्य मजारों, मस्जिदों और मदरसों के संरक्षण और देखरेख करना है। शम्सुद्दीन, अध्यक्ष एप्रूव्ड टूरिस्ट गाइड एसोसिएशन, का कहना है कि वक्फ बोर्ड ने ताजमहल को वक्फ संपत्ति घोषित कर इसके लाभ उठाने की कोशिश की, जबकि ताजमहल को 1920 में ब्रिटिश भारत द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था। ताजमहल के संरक्षण की जिम्मेदारी एएसआई की है।

 

वर्तमान में वक्फ संशोधन विधेयक-2024 पर विचार हो रहा है, जो वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार और पारदर्शिता लाने के लिए कई बदलाव प्रस्तावित करता है। एएसआई ने इस विधेयक का समर्थन किया है, उम्मीद है कि इससे वक्फ बोर्ड और एएसआई के बीच विवादों का समाधान हो सकेगा और स्मारकों का संरक्षण बेहतर तरीके से किया जा सकेगा। ताजमहल भारत सरकार की संपत्ति है और इसे 1858 में ब्रिटिश महारानी द्वारा मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर से ली गई संपत्तियों के अंतर्गत शामिल किया गया था। यह स्मारक भारत की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संरक्षित किया गया है और वैश्विक स्तर पर एक अद्वितीय स्मारक माना जाता है।

 

क्या है वक्फ एक्ट और इसके पास कितनी ताकत ?

 

वक्फ अधिनियम को पहली बार नेहरू सरकार द्वारा 1954 में संसद द्वारा पारित किया गया था। इसके बाद, इसे निरस्त कर दिया गया और 1995 में एक नया वक्फ अधिनियम पारित किया गया, जिसमें वक्फ बोर्डों को और अधिक अधिकार दिए गए। 2013 में, मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इसे असीमित अधिकार दे दिए। जिसके बाद ये प्रावधान हो गया कि अगर वक्फ किसी संपत्ति पर दावा ठोंक दे, तो पीड़ित अदालत भी नहीं जा सकता, ना ही राज्य और केंद्र सरकारें उसमे दखल दे सकती हैं। पीड़ित को उसी वक्फ के ट्रिब्यूनल में जाना होगा, जिसने उसकी जमीन हड़पी है, फिर चाहे उसे जमीन वापस मिले या ना मिले। यह भी ध्यान दें कि, अगर आप काशी-मथुरा जैसे अपने किसी मंदिर को अतिक्रमणकारियों द्वारा तोड़ने और वहां कब्जा करने का मामला लेकर अदालत जाएंगे, तो इसी कांग्रेस का पूजा स्थल कानून 1991 आपको रोक देगा, ये कहकर कि 1947 में जिस स्थल का धार्मिक चरित्र जो था, वही रहेगा। लेकिन वक्फ औरंगज़ेब के समय में दान की गई कथित जमीन पर भी कब्जा कर सकता है और फिर भी आप कोर्ट नहीं जा सकते, क्योंकि, कांग्रेस का ही वक्फ कानून आपको रोकेगा। और वक्फ को इसका कोई सबूत पेश करने की भी जरूरत नहीं होगी कि सचमुच ये जमीन उसकी है। क्या कांग्रेस के इन दो कानूनों में विशुद्ध धोखाधड़ी नहीं दिखती, जहाँ गैर-मुस्लिमों से इन्साफ का अधिकार ही छीन लिया गया है ? अगर इस तरह भारत सरकार चन्द्रगुप्त मौर्या के समय का नक्शा इस्तेमाल करके जमीनों पर कब्जा शुरू कर दे, तो कट्टरपंथियों के पास क्या बचेगा ?

यही कारण है कि बीते कुछ सालों में वक्फ की संपत्ति दोगुनी हो गई है, जिसके शिकार अधिकतर दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज के लोग ही होते हैं। वक्फ कई जगहों पर दावा ठोंककर उसे अपनी संपत्ति बना ले रहा है और आज देश का तीसरा सबसे बड़ा जमीन मालिक है। रेलवे और सेना के बाद सबसे अधिक जमीन वक्फ के पास है, 9 लाख एकड़ से अधिक जमीन। देश की 9 लाख एकड़ जमीन सरकार के हाथ से निकलकर वक्फ के हाथ में चली गई और जनता को पता ही नहीं कि देश किसने बेचा ? हर साल वक्फ का सर्वे होता है और उसकी संपत्ति बढ़ जाती है, पूरे के पूरे गांव को वक्फ की संपत्ति घोषित कर दिया जाता है और कहीं सुनवाई भी नहीं होती। गौर करने वाली बात तो ये है कि, रेलवे और सेना की जमीन के मामले अदालतों में जा सकते हैं, सरकार दखल दे सकती है, लेकिन वक्फ अपने आप में सर्वेसर्वा है। उसमे किसी का दखल नहीं और ना ही उससे जमीन वापस ली जा सकती है। मोदी सरकार इसी असीमित ताकत पर अंकुश लगाने के लिए बिल लाइ है, ताकि पीड़ित कम से काम कोर्ट तो जा सके और वक्फ इस तरह हर किसी की संपत्ति पर अपना दावा न ठोक सके। इस बिल को विपक्ष, मुस्लिमों पर हमला बताकर विरोध कर रहा है। सरकार ने विपक्ष की मांग को मानते हुए इसे JPC के पास भेजा है, जहाँ लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सांसद मिलकर बिल पर चर्चा करेंगे और इसके नफा-नुकसान का पता लगाएंगे। JPC के कुछ सदस्यों ने जनता से भी उनका पक्ष रखने के लिए कहा है, देखा जाए तो हर भारतीय को इस पर अपने विचार रखने चाहिए, क्योंकि इस देश की जमीन पर सबका अधिकार है। सुझाव भेजने का पता जॉइंट सेक्रेटरी (JM), लोकसभा सचिवालय, रूम नंबर 440, पार्लियामेंट हाउस एनेक्सी, नई दिल्ली, पिन कोड 110001 है। फैक्स नंबर 011-23017709 और ईमेल jpcwaqf-lss@sansad.nic.in पर भी सुझाव भेजे जा सकते हैं।

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