8 लाख सालाना की आय पर OBC क्रीमीलेयर में आ जाता है, जबकि उसी 8 लाख के सालाना आय पर जनरल गरीब यानी EWS क्यों होता है?”
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Sachin Meena
सुप्रीम कोर्ट के SC/ST में क्रीमीलेयर में लगाने के फैसले पर सवाल उठाते हुए मुकेश कुमार वर्मा ने ट्विटर पर अपना असंतोष जताया है। वर्मा ने एक ट्वीट में सुप्रीम कोर्ट से पूछा कि जब 8 लाख रुपये की वार्षिक आय पर किसी व्यक्ति को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के क्रीमीलेयर में शामिल किया जाता है, तो उसी आय पर सामान्य वर्ग का व्यक्ति आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) कैसे माना जा सकता है?
वर्मा ने अपने ट्वीट में लिखा, “चलिए, हम मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का हर फैसला सही होता है, लेकिन कोई हमें यह तो समझा दे कि 8 लाख सालाना की आय पर OBC क्रीमीलेयर में आ जाता है, जबकि उसी 8 लाख के सालाना आय पर जनरल गरीब यानी EWS क्यों होता है?”
वर्मा के इस ट्वीट ने सोशल मीडिया पर एक नई बहस छेड़ दी है। कई लोग उनकी बात का समर्थन कर रहे हैं और इसे नीतिगत भेदभाव के रूप में देख रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि सरकार को इस मुद्दे पर पुनर्विचार करना चाहिए और आय सीमा के आधार पर समानता सुनिश्चित करनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट अगर भेदभाव नहीं करता तो EWS आरक्षण पर सवाल क्यों नहीं उठाये। यह कैसे संभव हो सकता है कि किसी को उतनी ही आय में क्रीमीलेयर ठहरा रहे हो और किसी को उसी आय में गरीब। यह कैसा न्याय है कि OBC उसी आय में आरक्षण से बंचित हो जाता है और जनरल उसी आय में गरीब अर्थात EWS हो जाता है।
सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10% आरक्षण को वैध ठहराया था। सरकार ने कहा था कि EWS आरक्षण का उद्देश्य उन लोगों को सहायता प्रदान करना है जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं, लेकिन OBC और अन्य आरक्षित श्रेणियों में नहीं आते हैं।
हालांकि, वर्मा का यह सवाल अब सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है। कई विशेषज्ञों का कहना है कि यह मुद्दा केवल नीतिगत ही नहीं बल्कि सामाजिक न्याय से भी जुड़ा है, और इसके प्रभाव का गहन विश्लेषण किया जाना चाहिए।
सरकार और न्यायपालिका के सामने अब यह चुनौती है कि वे इस तरह के सवालों का संतोषजनक जवाब दें ताकि समाज में किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो। आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर और भी बहसें होने की संभावना है, जिससे नीतिगत बदलावों का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।