केजरीवाल आएंगे बाहर? क्यों अहम है दिल्ली के मुख्यमंत्री की जमानत की टाइमिंग

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Sachin Meena

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तिहाड़ जेल में बंद हैं. आबकारी नीति से जुड़े सीबीआई मामले में जमानत को लेकर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना सकता है. दिल्ली के सीएम उन बड़े नेताओं में आखिरी ऐसी हस्ती हैं, जो कथित शराब घोटाले में अब तक सलाखों के पीछे हैं.

कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल सकती है. हालांकि, सीबीआई की तरफ से दलील दी गई है कि केजरीवाल बतौर सीएम गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं इसलिए उन्हें फिलहाल जमानत नहीं दी जाए. मामले में पिछले हफ्ते ही सुनवाई पूरी हो चुकी है और सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर रखा है.

 

फैसले की टाइमिंग क्यों है अहम?

 

हरियाणा में शुक्रवार से ही चुनाव प्रचार का असली दौर शुरू होगा क्योंकि गुरुवार यानी 12 सितंबर तक नामांकन की प्रक्रिया चल रही थी. ऐसे में अरविंद केजरीवाल का बेल पर छूट कर बाहर आना टाइमिंग के हिसाब से परफेक्ट हो सकता है. इसके अलावा दिल्ली में भी राष्ट्रपति शासन की सुगबुगाहट चल रही है. बड़ी दलील ये है कि मुख्यमंत्री के जेल में बंद होने के कारण देश की राजधानी में कामकाज ठप पड़ा है. राष्ट्रपति ने दिल्ली के बीजेपी विधायकों की राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग को केंद्रीय गृह सचिव के पास विचार के लिए भेजा है. लेकिन केजरीवाल के बाहर आने के बाद बीजेपी के इस मुहिम की हवा निकल सकती है.

 

हरियाणा में तत्काल संभालेंगे कमान

 

हरियाणा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने अकेले दम पर लड़ने का फैसला किया है और सभी 90 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं. हरियाणा में आम आदमी पार्टी का संगठन दिल्ली और पंजाब की तुलना में काफी कमजोर है और ऐसे में अरविंद केजरीवाल की कैंपेनिंग से ही उम्मीदवारों को सबसे ज्यादा उम्मीद है. कांग्रेस से गठबंधन की बातचीत टूटने के बाद विपक्षी गठबंधन में भी फूट दिखाई दे रही है.

 

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर केजरीवाल जेल से बाहर होते तो गठबंधन को लेकर सकारात्मक नतीजे आ सकते थे क्योंकि उनके संबंध कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ काफी मधुर रहे हैं. लेकिन अब गठबंधन तो नहीं हुआ, ऐसे में विपक्षी गठबंधन के अंदर के समीकरण में अपनी पार्टी का महत्व बढ़ाने के लिए AAP को कुछ सीटें जीतनी होंगी और इसके लिए केजरीवाल से बंहतर उम्मीद कोई नहीं है.

 

दिल्ली में भी दिखाएंगे जलवा

 

दिल्ली अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक कर्मभूमि रही है. दो चुनावों में बंपर जीत हासिल कर सरकार बनाने वाले केजरीवाल दिल्ली वालों की नब्ज पहचानने में माहिर हैं. ऐसे में चुनावों से 4 महीने पहले केजरीवाल का बाहर आना दिल्ली की सियासत में सबसे ज्यादा हलचल लेकर आएगा. विपक्षी भी मानते हैं कि केजरीवाल के बाहर आने से आम आदमी पार्टी की ताकत कम से कम दिल्ली में तो दोगुनी हो ही जाती है. इसलिए बाहर आते ही बतौर मुख्यमंत्री केजरीवाल ताबड़तोड़ फैसले ले सकते हैं. खासतौर पर महिलाओं के लिए प्रति महीने 1000 रुपए की स्कीम अब तक लागू नहीं हो पाई है और इसलिए दिल्ली के सीएम का रोल ऐसी योजनाओं को चुनाव से पहले धरातल पर लाने में काफी महत्वपूर्ण होने वाला है.

 

सिसोदिया और बड़े नेताओं के रोल भी होंगे तय

 

दिल्ली का आबकारी नीति मामले में आम आदमी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व एक समय लगभग पूरी तरह जेल के अंदर था, लेकिन मनीष सिसोदिया की जमानत के बाद जो राहत का सिलसिला शुरू हुआ, वो अरविंद केजरीवाल के जेल से बाहर आने के साथ ही पूरी हो सकता है. गुजरात चुनावों में राष्ट्रीय पार्टी की हैसियत हासिल करने के बाद पार्टी के सामने चुनौती संगठन विस्तार की थी, लेकिन झटके के बाद झटकों ने उसकी इस महत्वाकांक्षी योजना पर ब्रेक लगा दिया.

 

अगर केजरीवाल बाहर आते हैं तो कई अहम नेताओं को सरकार से लेकर संगठन के बीतर नई जिम्मेदारियां दी जा सकतीं हैं ताकि पार्टी की गाड़ी दोबारा पटरी पर लौट सके. मनीष सिसोदिया यूं तो जेल से निकलने के बाद पूरी दिल्ली में पदयात्रा कर रहे हैं लेकिन उन्हें सीएम की गैरमौजूदगी में डिप्टी सीएम या मंत्री नहीं बनाया जा सकता था. रिहाई के बाद ही केजरीवाल फैसला कर पाएंगे कि सिसोदिया और बाकी वरिष्ठ नेता किस रोल में ज्यादा फिट बैठेंगे.

 

केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली तो…

 

निश्चित तौर पर ऐसा होना आम आदमी पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका होगा, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिलने के बाद केजरीवाल के तुरंत जेल से छूट कर बाहर आने की संभावनाएं लगभग खत्म हो जाएंगी. फिर हरियाणा तो छोड़िए, दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी रणनीति को लेकर पार्टी के अंदर मौजूदा विकल्पों में से ही रणनीतिक फैसला लेना होगा. फिलहाल, हरियाणा चुनावों में प्रचार की कमान केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल ने संभाल रखी है. जमानत ना मिलने की हालत में विपक्ष भी ज्यादा हमलावर होगा और करप्शन से जुड़े मामले में केजरीवाल और उनकी पार्टी कठघरे में खड़ी होगी जो कि महत्वपूर्ण चुनावों से पहले शुभ संकेत नहीं होंगे.

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