Delhi MCD Politics: निगम की सत्ता पर उत्तरी दिल्ली का दबदबा, मुश्किल में दक्षिणी और पूर्वी जिलों के पार्षद
न्यूज ऑनलाइन एसएम
रिपोर्ट : सचिन मीणा
नई दिल्ली।
दिल्ली के पूर्वकालिक निगमों के बाद एकीकृत हुए दिल्ली नगर निगम में सत्ता पर उत्तरी दिल्ली का दबदबा बढ़ता जा रहा है, जहां सत्तारुढ़ आप ने महापौर और उप महापौर जैसे प्रमुख पद भी इस बार उत्तरी दिल्ली के पार्षदों को दिए गए तो वहीं भाजपा ने भी जो नेता प्रतिपक्ष बनाए है वह भी उत्तरी दिल्ली से ही हैं।
इससे निगम के प्रमुख पदों पर उत्तरी दिल्ली का ही कब्जा हो गया है। इसे देख दक्षिणी और पूर्वी दिल्ली के पक्ष-विपक्ष के पार्षद अपनी उपेक्षा से दुखी है, ऐसे में अब उनकी आस स्थायी समिति को लेकर ही है। उनका मानना है कि इसमें भी उन्हें प्रतिनिधित्व नहीं मिला तो पूर्वी और दक्षिणी दिल्ली के मुद्दों पर समाधान उस स्तर पर नहीं हो पाएगा, जिस स्तर वहां से आने वाले पार्षद के हिसाब से मिलता है।
पूर्वी दिल्ली के पार्षद का छलका दर्द
पूर्वी दिल्ली से दूसरी बार चुनकर आए एक पार्षद ने कहा कि निगम के एकीकरण के बाद हम तो इस बात से दुखी थे कि पूरी नौकरीशाही पर दक्षिणी दिल्ली के अधिकारियों का कब्जा था। सफाई से लेकर पार्किंग,उद्यान, शिक्षा, इंजीनियरिंग जैसे महत्वपूर्ण विभागों पर पूर्वकालिक दक्षिणी निगम में विभागाध्यक्ष रहे अधिकारियों का कब्जा था तो काम कराने में काफी दिक्कत हो रही थी। अब जब निगम की सत्ता में प्रमुख पदों पर उत्तरी दिल्ली से चुनकर आए पार्षदों को ही अब तक मौका मिला है। ऐसे में पूर्वी दिल्ली से करीब 60 पार्षदों की आवाज अब कौन सुनेगा।
वहीं, एक आप पार्षद ने भी कहा कि अधिकारी तो वैसे ही पहले से ही नहीं सुन रहे थे। अब महापौर और उप महापौर यहां तक की नेता सदन भी उत्तरी दिल्ली से ही हैं। यानी नौकरशाही (कार्यकारी पक्ष) के काम दक्षिणी दिल्ली के पार्षद आसानी से करा लेंगे, जबकि महापौर और नेता सदन (विधायी पक्ष) के स्तर काम उत्तरी दिल्ली के पार्षद आसानी से करा लेंगे। पूर्वी दिल्ली की कौन सुनेगा।
दक्षिणी दिल्ली के एक भाजपा पार्षद ने कहा कि वह पहली बार चुनकर आए हैं। न तो उनकी अधिकारियों से जान पहचान हैं और न ही जो प्रमुख पदों पर बैठे हैं उनसे। ऐसे में क्षेत्र के लिए अधिकारियों से मिलना और काम कराने में काफी मुश्किल हो रही है।
उल्लेखनीय है कि 22 मई, 2022 से दिल्ली के तीनों निगम एक हो गए थे। पूर्वकालिक दक्षिणी और उत्तरी निगम में 104-104 पार्षद थे। पूर्वी दिल्ली में 64 पार्षद थे। जब निगम का एकीकरण हुआ तो पूर्वकालिक दक्षिणी निगम के अधिकारियों को ही मुख्य पदों पर जिम्मेदारी दी गई थी।
मनोनीत सदस्यों में भी उत्तरी-दक्षिणी दिल्ली को मिला प्रतिनिधित्व
दिल्ली नगर निगम में उपराज्यपाल द्वारा मनोनीत किए 10 सदस्यों में से उत्तरी और दक्षिणी दिल्ली के ही नेताओं को मौका मिला। जहां उत्तरी दिल्ली में 10 में से आठ मनोनीत सदस्य उत्तरी दिल्ली के नरेला और सिविल लाइंस जोन से हैं। जबकि दो सदस्य मध्य जोन से हैं। हालांकि इसके पीछे राजनीतिक कारण हैं क्योंकि स्थायी समिति के चेयरमैन का गणित इस प्रकार से बन सकता है कि वहां पर भाजपा मनोनीत सदस्यों की मदद से जोन चेयरमैन का चुनाव जीत सकते हैैं।